peace
बुधवार, जनवरी 19, 2011
अनुशासन और अनिवार्यता में फर्क समझें
अनुशासन के नाम पर कई लोग बेमतलब या गैर-जरूरी बातों को भी अनिवार्यता बना लेते हैं। अगर जरूरत से ज्यादा नियमों को पाला जाए तो वे भी शांति को भंग कर देते हैं। जीवन में कुछ समय खुद को अनुशासन या कहिए सांसारिक सिद्धांतों से मुक्त रखिए। आध्यात्मिक शांति के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप पर कोई अनावश्यक दबाव न हो। मन प्रसन्न हो, दिमाग पर बोझ न रहे।
जीवन में अनुशासन हो यह बात तो समझ में आती है लेकिन जीवन में बातों की अनिवार्यता हो जाए तो फिर अशांति का जन्म होता है। अनिवार्यता का अर्थ है ऐसा होना ही चाहिए का आग्रह। आध्यात्मिक जीवन, मुक्त जीवन होता है। सारे काम मनुष्य करता है फिर भी उसे यह बोध रहता है कि मैं नहीं कर रहा। बहुत कुछ हो रहा है और उस होने से जितना हम स्वीकृत हैं उतना ही शांत होते जाएंगे। ध्यान रखें इसका अकर्मण्यता से कोई लेना-देना नहीं है। सारा मामला है सहजता का। आप सहज हुए कि मुक्त हुए। अभी हम मुक्त नहीं हैं अभी हम बंधे हुए हैं और वह भी दूसरों से बंधे हुए हैं। जैसे किसी वाहन की चाबी चालक ने लगाई और वाहन चल दिया। वाहन यह नहीं कह सकता कि मैं नहीं चलूंगा।
हमें दूसरे ने गाली दी, टक्कर मारी, अपमान किया और हम एकदम चार्ज हो गए। बिलकुल ऐसे जैसे दूसरे के चाबी लगाने की प्रतीक्षा ही कर रहे थे। कभी विचार करिए किसी ने अपशब्द कहे और हम क्रोधित या व्यथित हो गए, हमने शब्दांे को लिया तभी ऐसा हुआ। क्या कभी मन में यह विचार आता है कि हम दूसरोंे के ऐसे शब्दों को नहीं लेंगे। अपशब्द तीर की तरह चुभते हैं। सामने वाले ने कहा और हम बेहोश हुए। फिर इस बेहोशी में हम हिंसात्मक हो जाते हैं, बेचैन हो जाते हैं, परेशान हो जाते हैं। हमारा होश में रहना भी हमारे हाथ में नहीं रहता। सीधी सी बात है हम इतने से भी अपने मालिक नहीं हैं। कोई दूसरा हम से यदि क्रोध करवा सकता है तो कुछ भी करवा सकता है। वह चापलूसी करके हमसे गलत काम करवा सकता है क्योंकि हम बेहोश हैं, यंत्रवत हैं और यदि मुक्त हैं तो फिर हम निर्णय जागकर लेंगे, होश में लेंगे और इसी होश का नाम है स्वयं के पास बैठना, स्वयं को जानना।
जीवन में अनुशासन हो यह बात तो समझ में आती है लेकिन जीवन में बातों की अनिवार्यता हो जाए तो फिर अशांति का जन्म होता है। अनिवार्यता का अर्थ है ऐसा होना ही चाहिए का आग्रह। आध्यात्मिक जीवन, मुक्त जीवन होता है। सारे काम मनुष्य करता है फिर भी उसे यह बोध रहता है कि मैं नहीं कर रहा। बहुत कुछ हो रहा है और उस होने से जितना हम स्वीकृत हैं उतना ही शांत होते जाएंगे। ध्यान रखें इसका अकर्मण्यता से कोई लेना-देना नहीं है। सारा मामला है सहजता का। आप सहज हुए कि मुक्त हुए। अभी हम मुक्त नहीं हैं अभी हम बंधे हुए हैं और वह भी दूसरों से बंधे हुए हैं। जैसे किसी वाहन की चाबी चालक ने लगाई और वाहन चल दिया। वाहन यह नहीं कह सकता कि मैं नहीं चलूंगा।
हमें दूसरे ने गाली दी, टक्कर मारी, अपमान किया और हम एकदम चार्ज हो गए। बिलकुल ऐसे जैसे दूसरे के चाबी लगाने की प्रतीक्षा ही कर रहे थे। कभी विचार करिए किसी ने अपशब्द कहे और हम क्रोधित या व्यथित हो गए, हमने शब्दांे को लिया तभी ऐसा हुआ। क्या कभी मन में यह विचार आता है कि हम दूसरोंे के ऐसे शब्दों को नहीं लेंगे। अपशब्द तीर की तरह चुभते हैं। सामने वाले ने कहा और हम बेहोश हुए। फिर इस बेहोशी में हम हिंसात्मक हो जाते हैं, बेचैन हो जाते हैं, परेशान हो जाते हैं। हमारा होश में रहना भी हमारे हाथ में नहीं रहता। सीधी सी बात है हम इतने से भी अपने मालिक नहीं हैं। कोई दूसरा हम से यदि क्रोध करवा सकता है तो कुछ भी करवा सकता है। वह चापलूसी करके हमसे गलत काम करवा सकता है क्योंकि हम बेहोश हैं, यंत्रवत हैं और यदि मुक्त हैं तो फिर हम निर्णय जागकर लेंगे, होश में लेंगे और इसी होश का नाम है स्वयं के पास बैठना, स्वयं को जानना।
कल्पनाओं को दबाए नहीं, उन्हें पंख दें
जब बच्चा कोई अटपटी बात करता है या कोई ऐसी कल्पना करता है जिसे हम सत्य समझने से झिझकते हैं तो बच्चे को टोक देते हैं। लगभग सभी मां-बाप अपने जीवन में एक यह भूल कर देते हैं, जिससे बच्चे का विकास और उसमें मौजूद संभावनाओं पर एक तरह का पहरा लग जाता है। बच्चों की कल्पनाओं को दबाए नहीं, उन्हें सही दिशा दें। जहां जरूरत पड़े उन्हें पूरा प्रोत्साहन दें।
सुख को गुजर जाने दें, पकड़कर न बैठें
सुख आता है तो हम उसे लपक कर थामने की कोशिश करते हैं, उसे पूरी तरह अपना मानकर बैठ जाते हैं। और जब वह सुख जाने लगता है तो फिर शोर मचाते हैं। ये मानव स्वभाव है, हम सुख के आने पर इतना खुश नहीं होते जितना उसके जाने से निराश हो जाते हैं। दरअसल सुख के आने या जाने में कोई समस्या नहीं है, समस्या तो सुख को हमेशा कसकर पकड़ रखने के हमारे स्वभाव में है। जीवन में जब सुख आए तो दूर से देखकर एक निश्चित फासला बनाकर उसे गुजरने दें। आइने के बहुत पास आ जाएं तो छवि अस्पष्ट हो जाती है। एक दूरी जरूरी है। सुख के साथ बहुत खुशी से उछलकूद न करें। मंद शीतल हवा की तरह उसे भी गुजर जाने दें। जिस दिन हम सुख में इस तरह से सफल हो गए फिर आप पाएंगे एक दिन दुख में भी इसी तरह प्रसन्न हो सकेंगे।
रविवार, जनवरी 16, 2011
कैसे पहचानें कुंडली में शनि दोष
शनि का राशि परिवर्तन होते ही लोग भयभीत हो उठते हैं कि अब शनिदेव न जाने क्या गजब ढाएँगे। जिन लोगों की कुंडली नहीं बनी होती उनके लिए यह बड़ा प्रश्न होता है कि शनि बुरा है या अच्छा यह कैसे जानें... शनि की प्रतिकूल अवस्था हमारी दिनचर्या को भी प्रभावित करती है, जिसे नोट करके जाना जा सकता है कि कहीं शनि प्रतिकूल तो नहीं।
1. यदि शरीर में हमेशा थकान व आलसभरा लगने लगे।
2. नहाने-धोने से अरुचि होने लगे या नहाने का वक्त ही न मिले।
3. नए कपड़े खरीदने या पहनने का मौका न मिले।
4. नए कपड़े व जूते जल्दी-जल्दी फटने लगें।
5. घर में तेल, राई, दालें फैलने लगे या नुकसान होने लगे।
6. अलमारी हमेशा अव्यवस्िथत रहने लगे।
7. भोजन से बिना कारण अरुचि होने लगे।
8. सिर व पिंडलियों में, कमर में दर्द बना रहे।
9. परिवार में पिता से अनबन होने लगे।
10. पढ़ने-लिखने से, लोगों से मिलने से उकताहट होने लगे, चिड़चिड़ाहट होने लगे।
NDयदि ये लक्षण आप स्वयं में महसूस करें, तो शनि का उपाय करें।
तेल, राई, उड़द का दान करें। पीपल के पेड़ को सींचें, दीपक लगाएँ। हनुमान जी व सूर्य की आराधना करें, माँस-मदिरा का त्याग करें, गरीबों की मदद करें, काले रंग न पहनें, काली चीजें दान करें।
1. यदि शरीर में हमेशा थकान व आलसभरा लगने लगे।
2. नहाने-धोने से अरुचि होने लगे या नहाने का वक्त ही न मिले।
3. नए कपड़े खरीदने या पहनने का मौका न मिले।
4. नए कपड़े व जूते जल्दी-जल्दी फटने लगें।
5. घर में तेल, राई, दालें फैलने लगे या नुकसान होने लगे।
6. अलमारी हमेशा अव्यवस्िथत रहने लगे।
7. भोजन से बिना कारण अरुचि होने लगे।
8. सिर व पिंडलियों में, कमर में दर्द बना रहे।
9. परिवार में पिता से अनबन होने लगे।
10. पढ़ने-लिखने से, लोगों से मिलने से उकताहट होने लगे, चिड़चिड़ाहट होने लगे।
NDयदि ये लक्षण आप स्वयं में महसूस करें, तो शनि का उपाय करें।
तेल, राई, उड़द का दान करें। पीपल के पेड़ को सींचें, दीपक लगाएँ। हनुमान जी व सूर्य की आराधना करें, माँस-मदिरा का त्याग करें, गरीबों की मदद करें, काले रंग न पहनें, काली चीजें दान करें।
अगर आपकी गाड़ी अक्सर खराब ही रहती है...
क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि आपका वाहन, बाइक, कार या कोई हैवी व्हीकल हमेशा खराब रहता है। आप बार बार उसे ठीक करवाते हैं, उस पर पैसे खर्च करते हैं फिर भी आपका वाहन आपका साथ नहीं देता। ज्योतिष के नजरिए से देखें तो निश्चित ही आपकी कुंडली में शनि और मंगल अशुभ प्रभाव दे रहे हैं।
जी हां, ज्योतिष में वाहन के विषय में शनि और मंगल का विचार किया जाता है। शनि और मंगल के अशुभ प्रभाव से ही आपका वाहन हमेशा खराब रहता है।
यदि कुंडली में शनि या मंगल चौथे भाव के स्वामी होकर अपनी शत्रु राशि में स्थित होते हैं या कुंडली के 6, 8, 12 भाव में होते है तो आपका वाहन हमेशा खराब रहेगा। इससे गाड़ी में हमेशा कुछ-न-कुछ खराबी बनी रहती है। कभी रास्ते में चलते-चलते भी रुक जाती है तो कभी एक बार बंद होने के बाद स्टार्ट नहीं होती। इस परेशानी को ज्योतिषीय तरीकों से भी हल किया जा सकता है। इसके लिए आपको शनि और मंगल को मनाने के उपाय करने होंगे। ये उपाय जितने आसान हैं उतने ही कारगर भी हैं। इन्हें अपनाने से आपको फिर कभी ऐसी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
इसके लिए आप मंगल और शनि से संबंधित उपाय करें-
- अपनी बाइक पर रेडियम से लाल त्रिकोण बनाएं।
- कार में मंगल यंत्र रखें।
- मंगलवार के दिन पेट्रोल, डीजल या गैस न डलवाएं।
- अपने वाहन के आगे सिंदूर से स्वास्तिक बनाएं।
- कौवों को पूड़ी और खीर खिलाएं।
जी हां, ज्योतिष में वाहन के विषय में शनि और मंगल का विचार किया जाता है। शनि और मंगल के अशुभ प्रभाव से ही आपका वाहन हमेशा खराब रहता है।
यदि कुंडली में शनि या मंगल चौथे भाव के स्वामी होकर अपनी शत्रु राशि में स्थित होते हैं या कुंडली के 6, 8, 12 भाव में होते है तो आपका वाहन हमेशा खराब रहेगा। इससे गाड़ी में हमेशा कुछ-न-कुछ खराबी बनी रहती है। कभी रास्ते में चलते-चलते भी रुक जाती है तो कभी एक बार बंद होने के बाद स्टार्ट नहीं होती। इस परेशानी को ज्योतिषीय तरीकों से भी हल किया जा सकता है। इसके लिए आपको शनि और मंगल को मनाने के उपाय करने होंगे। ये उपाय जितने आसान हैं उतने ही कारगर भी हैं। इन्हें अपनाने से आपको फिर कभी ऐसी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
इसके लिए आप मंगल और शनि से संबंधित उपाय करें-
- अपनी बाइक पर रेडियम से लाल त्रिकोण बनाएं।
- कार में मंगल यंत्र रखें।
- मंगलवार के दिन पेट्रोल, डीजल या गैस न डलवाएं।
- अपने वाहन के आगे सिंदूर से स्वास्तिक बनाएं।
- कौवों को पूड़ी और खीर खिलाएं।
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